*Rasoolullah ﷺ ya kisi Auliya ke waseele (unke sadqe)se dua mangna kaisa hai?*
*Rasoolullah ﷺ ya kisi Auliya ke waseele (unke sadqe)se dua mangna kaisa hai?*
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*पैग़म्बर ﷺ और औलिया के वसीले से दुआ मांगना कहाँ तक सही है.*
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कुछ लोग दुआ करते वक्त कभी औलिया के वसीले से कभी पैग़म्बरों के वसीले से अल्लाह को राज़ी करने की कोशिश करते हैं और दुआ मांगते हैं. ये कहाँ तक सही है और हदीस-ओ-क़ुरआन में इसके बारे में क्या ज़िक्र है, आइये देखते हैं:
क़ुरआन से वसीला की जो पहली दलील दी जाती है वह ये है👇
दलील
"ऐे ईमान वालों, अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूँढो"
तर्जुमा-कंजुल ईमान अहमद रजा बरैलवी
(सूरह अल-मायदा आयत 35)
वजाहत:-
वसीला लफ्ज़ को वसीला ही इस्तेमाल किया जाये तो मानी बिलकुल यही होगा मगर अरबी के वसीला का लफ़्ज़ी मानी क़ुर्ब (नज़दीकी) होता है चुनांचे तफ्सीर इब्ने कसीर जिसको उम्मत के तमाम फिर्के मानते है।
उस में इस आयत की तफ्सीर में लिखा है कि
"मतलब यह है कि अल्लाह की मना कर्दा कामों से जो शख्स रूका रहे,उस की तरफ कुर्बत यानि नजदीकी तलाश करे। वसीले के यही मायने हजरत इब्ने अब्बास रदीयल्लाहो अन्हो से मन्कूल है।हजरत मुजाहीद , हजरत वाईल,हजरत हसन,हजरत इब्ने जैद रदीयल्लाहो अन्हो और बहुत से मुफस्सीरीन से भी मरवी है।
📗तफ्सीर इब्ने कसीर(सुरह मायदा आयत नं-35 की तफ्सीर )
इस तरह जब हम सहाबा किराम के फहम के मुताबिक सहीह तर्जुमा पर ग़ौर करें तो तर्जुमा है:
"ए इमान वालों ,अल्लाह से डरते रहो और उसका कुर्ब तलाश करो"
सुरह मायदा-35
यहां मैं इंसाफ के साथ यह बता दु कि बरेलवी उलेमा भी इस बात को मानते है कि लफ्जे वसीला का मतलब कुर्ब(नजदीकी)ही होता है जैसे कि तफ्सीरे खजाईन जो कंजुल ईमान के हाशिए पर लिखी हुई है।उसमें इसी आयत की तफ्सीर में लिखा है
"जिसकी बदौलत तुम्हें उसका (अल्लाह) का तकर्रूब हासिल हो"
📗तफ्सीरे खजाईन हाशिया-96
सुरह मायदा-35(कंजुल इमान)
इख्तेलाफ सिर्फ इस बात पर है कि अल्लाह का तकर्रूब हासिल करने के लिए किसको जरिया बनाया जाए? यानी जायज वसीला क्या है?इसके बारे में हमें कुरआन और सहीह हदीस से सिर्फ़ तीन तरीका मिलता है
पहला तरीका 👇
"और अल्लाह ही के बहुत अच्छे नाम तो उसे इन से पुकारो"
📗तर्जुमा-कंजुल ईमान
सुरह आराफ-180
इससे साबित हुआ कि
*अल्लाह के सिफाती नामों का वसीला ले सकते है*
दुसरा तरीका👇
" ए इमान वालों अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूँढो"
📗तर्जुमा-कंजुल ईमान
सुरह मायदा-35
अबु वइल शक़ीक़ बिन सलमा इस आयत की तफ़्सीर में फरमाते हैं "अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करो *अपने नेक आमाल से*..."
(तफ़्सीर अल-तबरी 5:35
हजरत इमाम कसीर रहीमहुल्लाह हजरत कतादा रदीयल्लाहो अन्हो के हवाले से फरमाते है कि अल्लाह की इताअत और उसकी मर्जी के अमल करने से उसके करीब होते जाओ"
📗तफ्सीर इब्ने कसीर(सुरह मायदा-35 की तफ्सीर)
"सहीह बुखारी की हदीस में है कि 3 आदमी जब गार में फंस गये तो तीनों ने बारी बारी से अपने नेक आमाल के वसीले से अल्लाह से दुआ की और फिर अल्लाह ने उनको निजात दी।
📗सहीह बुखारी-3465
यहाँ से वसीले का दुसरा तरीका साबित हुआ कि
*अपने नेक आमाल जो सिर्फ अल्लाह के लिए किया जाये उस आमाल का वसीला ले सकते है*
तिसरा तरीका👇
सहीह बुखारी की हदीस मे है कि हजरत उमर रदियल्लाहो अन्हो नबी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम की वफात के बाद उनके चचा हजरत अब्बास रदीयल्लाहो अन्हो से बारीश के लिए दुआ करवाई
📗सहीह बुखारी-3710
यहाँ तिसरा तरीका यह साबित हुआ कि
*नेक और स्वालेह इंसान से दुआ करवा सकते बशर्ते वो हयाते जीदंगी में हो न कि कब्र वाली जिदंगी में*
अल्लाह के तकर्रूब और उसकी तरफ वसीला लेने का इन तीन तरीकों के अलावा कुरआन और सहीह हदीस में कही भी अलग तरीका नहीं मिलता
बरेलवी उलेमा सू का अकीदा है कि अंबिया और औलिया किराम का भी वसीला ले सकते है इसके लिए वो कुछ दलील पेश करते है
दलील:1
"और हमने हर रसूल को सिर्फ इसलिए भेजा के अल्लाह के हुक्म से उसकी फरमाबरदारी की जाये, और ये लोग जब कभी अपनी जानों पे ज़ुल्म करते, तेरे पास आ जाते और अल्लाह से इस्तग़फ़ार करते और रसूल भी इनके लिए इस्तग़फ़ार करता तो यक़ीनन ये लोग अल्लाह को मुआफ करने वाला मेहरबान पाते."
(सूरह अल-निसा, आयत 64
इस आयत के साथ एक हदीस भी बयां की जाती है के अतबी का बयां है के, मुहम्मद ﷺ की क़ब्र के पास बैठा था इतने में एक अरबी आया और मुहम्मद ﷺ पे सलामती भेजी और कहा के इस आयत को पढ़ कर मैं आपसे गुनाह बख्शवाने आया हूँ... फिर उसने तारीफें की और फिर वो अरबी चला गया... मेरी आँख लग गयी और ख्वाब में मुझे मुहम्मद ﷺका हुक्म मिला के जा कर अरबी को कह दो के उसकी मगफिरत हो गयी.
वजाहत:
क़ुरआन की इस आयत का सही मफ़हूम ये है के अल्लाह तआला आसी और ख़ताकारों को इरशाद फरमाता है के उन्हें रसूल के पास आ कर अल्लाह से इस्तग़फ़ार करना चाहिए और खुद रसूल से भी अर्ज़ करना चाहिए के वो हमारे लिए दुआ करें
इस आयत का हुक्म मुहम्मद ﷺ की ज़िन्दगी तक ही था विसाल के बाद नहीं. जैसा के तर्जुमे में भी वाज़ेह है के रसूल से अर्ज़ करनी चाहिए के वो हमारे लिए दुआ करें... न के उनके नाम से दुआ करें भले ही उनका विसाल हो चूका हो.
दूसरी और अहम् बात ये के जो हदीस इस आयत के साथ बयां की गयी है वो किसी हदीस की किताब से नहीं ली गयी बल्कि सिर्फ एक मनघड़त किस्सा है जिसकी कोई दलील, कोई सनद मौजूद नहीं है. ये सिर्फ एक कहानी है.
दलील:2
हज़रत उस्मान बिन हनीफ रजि० से रिवायत है के एक नाबीना (अँधा ) शख्स आप ﷺ के पास आया और बोला "आप मेरे लिए दुआ कीजिये के अल्लाह मुझे शिफा आता फरमाये" . तो आप ﷺ ने फ़रमाया "अगर तुम सब्र करो ये तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर होगा और अगर चाहो तो मैं तुम्हारे लिए दुआ करूँगा" तो उसने कहा "आप दुआ कीजिये"
आप ﷺ ने फ़रमाया के जाओ अच्छी तरह वुज़ू करो और फिर दो रकात नमाज़ पढ़ो और फिर इस तरह दुआ करो
"ऐ अल्लाह, मैं तुझसे सवाल करता हूँ और तेरी तरफ रुख करता हूँ और मुहम्मद ﷺ के वसीले से मैं तुझसे दुआ करता हूँ, ऐ मुहम्मद ﷺ अपनी हाजत के लिए मैंने आपके वसीले से अल्लाह की तरफ रुख किया, ऐ अल्लाह, ये वसीला क़ुबूल फरमा "
(तिर्मिज़ी हदीस 3578) (इब्ने मजा, किताब 5 ईकामतुस्सलात, हदीस नंबर 1448 )
वजाहत:
ये सही हदीस है जिसमें नाबीना शख्स रसूले पाक ﷺ के वसीले से दुआ करता है मगर याद रहे के वो नाबीना शख्स, मुहम्मद ﷺ की ज़िन्दगी में ही दुआ करता है और अल्लाह के रसूल ने अपने वसीले से दुआ करना बताया और उस शख्स ने उनकी ज़िन्दगी में ही वसीले से अपने लिए दुआ की.
इस हदीस से बेशक ये साबित होता है के हम किसी नेक और सालेह इंसान को दुआ के लिए वसीला बना सकते हैं मगर उसकी हयात में ही, न के उसके फौत हो जाने के बाद भी.
फिर कही इस बात का सुबूत किसी हदीस से नहीं मिलता के मुहम्मद ﷺ के इंतेक़ाल के बाद भी किसी ने उनके वसीले से कभी दुआ की हो. इसलिए हम सिर्फ उन्ही लोगों का वसीले से दुआ कर सकते हैं जो बा-हयात हैं.
दलील :3
हज़रते अनस रजि० रवायत करते हैं के हज़रते उमर बिन खत्ताब रजि० ने क़हत (सूखा) के दौरान हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुतल्लिब रजि० को वसीला बना कर अल्लाह से बारिश के लिए दुआ की और फ़रमाया "ऐ अल्लाह हम पहले अपने नबी ﷺ के वसीले से दुआ करते थे और तू हमपे बारिश बरसाता था, अब हम तेरे सामने अपने प्यारे नबी मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ﷺ के चाचा को वसीला बनाते हैं, हम पे बारिश बरसा "
और फिर खूब बारिश हुई
(सही बुखारी हदीस नंबर 1010 और 3710)
इस हदीस से लोग ये साबित करने की कोशिश करते हैं के हम नबी के साथ साथ किसी भी नेक और सालेह इंसान के वसीले से दुआ कर सकते हैं.
वजाहत:
ये हदीस सही है और इस हदीस पे ग़ौर करें तो खुद ही सच आईने की तरह साफ़ हो जाता है. बेशक उनका कहना सही है के हम किसी नेक और सालेह इंसान के वसीले से दुआ कर सकते हैं बशर्ते के वो नेक इंसान ज़िंदा हो जैसा के इस हदीस से साबित है.
और अगर आप ग़ौर करें तो इस हदीस से ही यह भी साबित हो जाता है के हमे किसी फ़ौत हुए इंसान का वसीला नहीं लेने चाहिए चाहे वो पैग़म्बर ही क्यों न हों, क्यूंकि मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ﷺ (विसाल 11 हिजरी) के विसाल के बाद की ये हदीस है और हज़रते उमर बिन खत्ताब रजि० ये जानते थे के फ़ौत हुए इंसान को वसीला बनाना दुरुस्त नहीं है इसलिए उन्होंने उनके चाचा हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुतल्लिब रजि० (विसाल 32 हिजरी) को बारिश के लिए वसीला बनाया और उनके चाचा उस वक्त बा-हयात थे .
इस हदीस से भी साबित हुआ के मरे हुए इंसान को वसीला बनाना दुरुस्त नहीं है.
दलील :4
एक और मौजू हदीस बयान की जाती है के हज़रते आदम अलैहिस्सलाम से जब खता हो गयी तो उन्होंने मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ﷺ को वसीला बन कर दुआ की और अपने खताओं की अल्लाह से मुआफी मांगी और अल्लाह ने मुआफ कर दिया.
वजाहत:
मौजू हदीस कतई सही और हुज्जत नहीं होती और ये कुरआन से भी टकराती है क्यूंकि हज़रते आदम अलैहिस्सलाम ने जो दुआ की थी वो दुआ अल्लाह तआला ने खुद ही आदम अलैहिस्सलाम को सिखाया और वो दुआ है
"रब्बना ज़लमना अनफुसना व-इंलम तगफिरलना वतरहमना लनाकुननना मीनल खासिरीन"
तर्जुमा:- "ऐ हमारे रब, हमने अपनी जानों पे ज़ुल्म किया और अगर तूने हमे मुआफ न किया और हम पे रहम न किया तो यक़ीनन हम ख़साराउठने वालों में हो जायेंगे."
(सूरह 7 अल-आराफ, आयत 23 )
उन्होंने यही दुआ की थी जो अल्लाह तआला ने उन्हें सिखाया था, इसके अलावा अगर कोई और भी दुआ की होती तो यक़ीनन उसका ज़िक्र क़ुरआन में मौजूद होता. मगर कुछ ऐसा किसी हदीस या क़ुरआन से साबित नहीं है.
इमाम अबु हनीफा फरमाते हैं :
"दुआ बा-हक़ नबी और वाली के वसीले से मांगना नापसंदीदा अम्ल है इसलिए क्यूंकि मख्लूक़ का कुछ हक़ अल्लाह पर नहीं"
(हिदाया , सफहा नंबर 226)
*इन तमाम दलीलों से साबित हुआ के दुआ में पैग़म्बरों और औलिया जिनकी वफ़ात हो चुकी है उनका वसीला लेना बिलकुल भी जायज़ नहीं.*
( *हर बात दलील के साथ*)
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( *yaha bahut sari hadeese maujood hai alhumdullah)*
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As salaamu alaikum wa rakhmatullahi wabarakaatuhu brother Kya ap isko Roman Urdu me karsakte ha mujeh Hindi parni nei aati Jazak Allah kheira
ReplyDeleteUpar Wala comment Mera ha
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