*249 सही हदीस ⁠⁠⁠रफ़अयदैन करने की।*

*249 सही हदीस ⁠⁠⁠रफ़अयदैन करने की।*
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🔳 *⁠⁠⁠रफ़अ़ यदैन यानी दोनों हाथों को कन्धों या कानों तक उठाना* 🔳

सहीह अहादीस से नमाज़ में रफ़अ़ यदैन 4 मक़ामात पर साबित है:
1) तकबीर-ए-तहरीमा के वक़्त
2) रूकूअ़ में जाते वक़्त
3) रूकूअ़ से सिर उठाने के बाद
4) तीसरी रकअ़त के लिए खड़े होने पर
           नाफ़ेअ़ रिवायत करते हैं कि अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) तक्बीरे तहरीमा के वक़्त रफ़अ़ यदैन करते और जब रूकूअ़ करते तब और जब ‘समि अ़ल्लाहु लिमन हमिदह’ कहते तब और जब दूसरी रकअ़त से (तीसरी रक्अत के लिए) खड़े होते तब रफ़अ़ यदैन करते, और  अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) फ़रमाते  कि नबी ﷺ ऐसा ही करते थे. (सहीह बुख़ारी ह0 739)

👉🏿सहाबा (रज़ि 0) से इसका सुबूत👈🏿

वैसे तो तक़रीबन 50 सहाबा (रज़ि0)  से रफ़अ़ यदैन का सुबूत मिलता है लेकिन सिर्फ़ कुछ मशहूर सहाबा का ही ज़िक्र किया जा रहा है. इस बारे में ख़ुद इमाम शाफ़ई फ़रमाते  हैं कि " रफ़अ़ यदैन की रिवायत सहाबा की इतनी बड़ी तादाद ने बयान की है कि शायद इससे ज़्यादा तादाद ने कोई दूसरी हदीस बयान नहीं की. "(नैलुल औतार  2/3/9)

✳अबू बक्र (रज़ि0) : सुनन बैहक़ी 2/73
✳उमर (रज़ि0) : सुनन बैहक़ी 2/23, नस्बुर राया 1/416
✳अली (रज़ि0) : इब्न माजा ह0 864, अबू दाऊद ह0 739, मुस्नद अहमद 3/165, सुनन बैहक़ी 2/74
✳अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) : बुख़ारी ह0 739, मुस्लिम ह0 390, इब्न माजा ह0 858, तिरमिज़ी 255, इब्न हिब्बान 3/168
✳अबू हुरैरह (रज़ि0) : मुस्नद अहमद 1/93, इब्न ख़ुज़ैमा ह0 693, जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 19,22
✳अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि0) : मुसन्नफ़ अब्दुर रज़्ज़ाक़ 2/69, मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा 1/234,जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 21
✳अनस (रज़ि0) : इब्न माजा ह0 866, सुनन दार क़ुतनी 1/290, मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा 1/235
✳अबू मूसा अशअरी (रज़ि 0) : सुनन दार क़ुतनी 1/292
✳जाबिर (रज़ि0) : इब्न माजा ह0 868, मुस्नद सिराज ह0 92
✳उम्मे दरदा (रज़ि0) : जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 25
✳मालिक बिन हुवैरिस (रज़ि0) : मुस्लिम ह0 864,865, बुख़ारी ह0 737
✳वाइल बिन हुज्र (रज़ि0) : मुस्लिम ह0 896, इब्न माजा ह0 867, मुस्नद हमीदी 2/342
✳अबू हुमैद सअ़दी (रज़ि0) : अबू दाऊद ह0 730
✳अब्दुल्लाह इब्न ज़ुबैर (रज़ि0) : सुनन बैहक़ी 2/74
✳अबू सईद ख़ुदरी (रज़ि0) : जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 18,61
✳अब्दुल्लाह इब्न अम्र इब्न आस (रज़ि 0) : सुनन बैहक़ी 2/74
✳अब्दुल्लाह इब्न जाबिर (रज़ि 0) : सुनन बैहक़ी 2/75
✳सहल बिन सअ़द  (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, इब्न हिब्बान ह0 1868
✳अबू क़तादा  (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, अबू दाऊद ह0 730
✳मुहम्मद बिन मस्लमह (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, इब्न हिब्बान ह0 49
✳अबू उसैद (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, सुनन बैहक़ी 2/101
✳सलमान फ़ारसी (रज़ि 0)  : जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम सुबकी पेज 12

👉🏿सहाबा (रज़ि 0) का इज्मा👈🏿

जब उमर (रज़ि0)  ने मस्जिद नबवी में आम सहाबा के सामने रफ़अ़ यदैन से नमाज़ पढ़ाई तो सारे सहाबा ने कहा कि बेशक रसूलुल्लाह  ﷺ उसी तरह हमें नमाज़ पढ़ाते थे जिस तरह आपने पढ़ाई – (सुनन बैहक़ी 2/23, नस्बुर राया 1/416)
इसी तरह अबू हुमैद सअ़दी (रज़ि0) ने जब 10 सहाबा की मौजूदगी में रफ़अ़ यदैन के साथ नमाज़ पढ़ाई तो सारे सहाबा ने कहा कि बेशक रसूलुल्लाह ﷺ  इसी तरह हमें नमाज़ पढ़ाते थे- (अबू दाऊद ह0 730)

इन दोनों वाक़यात में किसी भी सहाबी ने यह नहीं कहा कि रफ़अ़ यदैन मन्सूख़ हो चुका है या रसूलुल्ल्लाह  ﷺ  तकबीर-ए-तहरीमा के अलावा कभी  रफ़अ़ यदैन नहीं करते थे, बल्कि सबने यही कहा कि रसूलुल्लाह ﷺ  इसी तरह हमें नमाज़ पढ़ाते थे, जो इस बात की खुली दलील है कि रफ़अ़ यदैन पर सारे सहाबा का इत्तिफ़ाक़ था और इस तरह रफ़अ़ यदैन पर सहाबा का इज्मा साबित होता है.

👉🏿अइम्मा-ए-किराम और उलमा हज़रात की गवाही👈🏿

⏩इमाम शाफ़ई (रह0) - " जो शख़्स नमाज़ के शुरू, रूकूअ़ से पहले और रूकूअ़ के बाद रफ़अ़ यदैन करने वाली हदीस सुन ले तो उसके लिए हलाल नहीं कि  वह इस पर अमल न करे और इस सुन्नत को छोड़ दे." (तबक़ाते शाफ़ई अल कुबरा 1/242)
⏩इमाम अहमद (रह0) - " जो लोग नमाज़ में रफ़अ़ यदैन नहीं करते हैं उनकी नमाज़ नाक़िस है." (अल मन्हजुल अहमद 1/159)
⏩इमाम बुख़ारी (रह0) - “अहले इल्म में से किसी से भी नबी ﷺ से रफ़अ़ यदैन छोड़ने की कोई दलील नहीं है. इसी तरह किसी सहाबी से भी रफ़अ़ यदैन न करना साबित नहीं है.” (जुज़ रफ़अ़ यदैन पेज 1)
⏩इमाम बैहक़ी (रह0) - “रफ़अ़ यदैन चारों खुलफ़ा-ए-राशिदीन, तमाम दूसरे सहबा और ताबिईन से साबित है.” (सुनन बैहक़ी 2/81)
⏩इमाम औज़ाई (रह0)  से पूछा गया कि उस शख़्स के बारे में क्या कहना है जो नमाज़ में रफ़अ़ यदैन की तादाद कम कर दे, तो उन्होंने कहा “उसकी नमाज़ नाक़िस है.” (अत-तबरी बा हवाला तम्हीद 9/226)
⏩इमाम हाकिम (रह0) - “हमें ऐसी किसी सुन्नत का पता नहीं जिसकी नबी ﷺ से रिवायत पर चारों -खुलफ़ा-ए-राशिदीन, अशरा-ए-मुबश्शरा और दीगर बड़े सहाबा मुत्तफ़िक़ हों अगरचे ख़ुद दूर दराज़ मुमालिक में फैले थे सिवाय इस (रफ़अ़ यदैन वाली) सुन्नत के.” (फ़तहुल बारी 2/220)
⏩इमाम इब्न क़य्यिम (रह0) - “जो शख़्स रूकूअ़ को जाते हुए और रूकूअ़ से उठते हुए रफ़अ़ यदैन न करे वो सुन्नते रसूल को छोड़ने वाला है.” (इअ़लामुल मुवक़्क़ेईन 1/325)
⏩अल्लामा इब्न जौज़ी (रह0) - “रफ़अ़ यदैन के मंसूख़ होने से मुताल्लिक़ जितनी भी रिवायात पेश की जाती हैं वो या तो ज़ईफ़ हैं या मौज़ूअ़ (गढ़ी हुई) हैं” (तज़किरतुल मौज़ूआत 2/98)
⏩अल्लामा सिंधी हनफ़ी (रह0) - “जो लोग यह कहते हैं कि रफ़अ़ यदैन मंसूख़ हो चुका है वो ग़लत हैं.” (हाशिया सुनन नसाई 1/140)
⏩शाह वली उल्लाह देहलवी (रह0) - " रफ़अ़ यदैन करने वाला शख़्स मेरे नज़दीक न करने वाले से अफ़ज़ल है, क्योंकि रफ़अ़ यदैन की अहादीस ज़्यादा हैं और सहीह हैं." (हुज्जतुलाहिल बालिग़ह 2/10)
⏩अनवर शाह कश्मीरी (रह0) - " रफ़अ़ यदैन की अहादीस सनद और अमल दोनों लिहाज़ से मुतवातिर हैं (यानी इतने ज़्यादा लोगों ने बयान की है कि जिनका झूठ पर जमा होना नामुमकिन है). इसमें कोई शक नहीं किया जा सकता . इसमें एक हर्फ़ भी मन्सूख़ नहीं हुआ है." (नैलुल फ़र्क़दैन पेज 22)
⏩अब्दुल हई फ़रंगी महली (रह0) -"नबी करीम ﷺ से रफ़अ़ यदैन करने का सुबूत ज़्यादा और निहायत उम्दा है. जो लोग कहते हैं कि रफ़अ़ यदैन मन्सूख़ हो गया हैं उनका दावा बेबुनियाद है. उनके पास कोई तसल्ली बख़्श दलील नहीं है." (तअलीकुल मुमज्जद पेज 91)

👉🏿रफ़अ़ यदैन नमाज़ की ज़ीनत है 👈🏿

✅अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0)  फ़रमाते हैं " रफ़अ़ यदैन नमाज़ की ख़ूबसूरती है." (उम्दतुल क़ारी 5/272, नैलुल औतार पेज 68)
✅इमाम इब्न सीरीन (रह0) फ़रमाते हैं " रफ़अ़ यदैन नमाज़ को मुकम्मल करता है." (जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 41, तल्खीसुल हबीर पेज 28)
✅मशहूर ताबई सईद इब्न जुबैर (रह0) फ़रमाते हैं " यह वह अमल है जिससे तुम अपनी नमाज़ को ख़ूबसूरत बनाते हो." (जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 39, सुनन बैहक़ी 2/75)

👉🏿रफ़अ़ यदैन का सवाब👈🏿

⚫उक़बा बिन आमिर (रज़ि0) से रिवायत है कि नबी ﷺ ने इरशाद फ़रमाया " आदमी अपनी नमाज़ में अपने हाथ के साथ जो इशारा करता है उसके एवज़  में उसके लिए 10 नेकियां लिखी जाती हैं, हर उंगली  के बदले एक नेकी मिलती है." (तबरानी कबीर 17/297, सिलसिला अहादीस अस सहीहा ह0 3276)
⚫हाफ़िज़ इब्न अब्दुल बर्र (रह0) कहते हैं कि अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0)  फ़रमाते हैं कि हर बार रफ़अ़ यदैन करने से 10 नेकियां मिलती हैं, हर उंगली पर एक नेकी." (उम्दतुल क़ारी 5/272 )

💎हमें एक बार रफ़अ़ यदैन करने पर 10 नेकियां मिलती हैं तो इस तरह 4 रकअ़त नमाज़ में कुल 100 नेकियां मिलेंगी. पूरे दिन में सिर्फ फ़र्ज़ नमाज़ों में ही हमें 430 नेकियां और सुन्नते मुअक्किदह में 600 नेकियां ज़्यादा मिलेंगी. तो इस तरह हम दिन भर में सिर्फ़ फ़र्ज़ और सुन्नते मुअक्किदह नमाज़ों के ज़रिए 1030 नेकियां ज्यादा पा सकते हैं. 
माशा अल्लाह !!

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