*20 रकात तरावीह हरामैन शरीफैन (मक्का) में क्यों और कब से होती आ रही है?*
*20 रकात तरावीह हरामैन शरीफैन (मक्का) में क्यों और कब से होती आ रही है?*
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*Tafseeli Jayeza* 👇👇👇
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रमजान आते ही अक्सर अहनाफ की तरफ से यह सवाल किया जाता है कि जब तरावीह 11 रकात(8 तरावीह+3 वित्र)सुन्नत है तो फिर काबा शरीफ और मस्जिदे नबवी में 20 रकात तरावीह क्यों पढाई जाती है?
👆 *इस सवाल का बिल्कुल छोटा सा उसूली जवाब है कि हमारे नजदीक कुरआन और सहीह हदीस के मुकाबले में किसी का अमल हुज्जत नहीं है।*
लेकिन चूँकि मुकल्लिदीन हजरात इस बात को लेकर अवाम में बड़ी गलतफहमी फैला रहे है कि काबा शरीफ और मस्जिदे नबवी में भी हमारी तरह 20 रकअत तरावीह होती है।
इसलिए यहाँ हम इसका तफसील से जवाब देना जरूरी समझते है ताकि भोले भाले मुसलमान किसी तरह के फित्ने का शिकार न हो। *तफसीली जवाब जानने के लिए ये पोस्ट पुरा पढ़े* 👇
कुरआन शरीफ की जब यह आयत नाजिल हुई
وَ اتَّخِذُوۡا مِنۡ مَّقَامِ اِبۡرٰہٖمَ مُصَلًّی ؕ
(और मकामे इब्राहीम को मुसल्ला बनाओ)
सुरह बकरा आयत नं-125
तब नबी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम ने काबा शरीफ में मकामे इब्राहीम की जगह पर मुसल्ला लगवाया और वहाँ खड़े होकर इमामत करते और यह सिलसिला चलता रहा लेकिन
👉 *आज से तक़रीबन 100 साल पहले जब तुर्की हमलावरों ने मक्का और मदीना पर कब्जा किया तो उन्होंने खाना ए काबा में नबी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम के मुसल्ले को हटाकर चार मुसल्ले लगवा दिये थे* यानी चारों तरफ चार मज़हब हनफी, शाफई, मालिकी, हम्बली के मुसल्ले थे। जब शाफी नमाज़ पढ़ते तो बाकी बैठे रहते, जब मालिकी नमाज़ पढ़ते तो बाकी 3 इंतज़ार करते यानी कोई किसी के पीछे नमाज़ अदा नहीं करता था इस तरह उम्मते मुहम्मदीया के इत्तेहाद का जनाजा निकला हुआ था।
👉 *आले सऊद की हुकूमत ने तुर्कीयों से मक्का और मदीना को आजाद करवाने के साथ ही मुसलमानों के मरकज़ से, इस तकलीफ़ देह सूरते हाल का खातमा किया* गया और उसकी मरकज़ीयत बहाल करते हुए 4 मुसल्लों की रस्म को ख़त्म कर दिया, और फिर वापस नबी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम का एक मुसल्लाह जो सिर्फ कुरान व हदीस की तरफ मंसूब था उसे वहां क़ायम कर दिया। और सुन्नत को फिर से जिंदा करते हुए *तमाम मुसलमानों को एक वक़्त, एक जमात और एक इमाम पर इकट्ठा कर दिया,* यूँ पूरी दुनिया ने इस्लाम और मुसलमानों की मरकज़ियत और यकजहती को अपनी आँखों से देखा।
👉 *अब रहा यह सवाल की अगर किताब व सुन्नत में क़यामुल्लैल(तरावीह) की तादात 11 रकत है और अहले सऊदी अरब भी 11 रकत के क़ायल हैं, तो हरमैन शरीफ़ैन और मस्जिदे नबवी में 20 रकत नमाज़ ए तरावीह क्यों अदा की जाती है?*
क्या ये खुला तज़ाद (टकराव) नहीं है?
👆 *इसका जवाब यह कि जब ऐसे तारीक दौर के बाद सबसे पहले रमज़ान में सुन्नत ए नबवी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मुताबिक 11 रकअत तरावीह पढ़ाई गई, तो 20 रकअत पढ़ने वालों ने शोर मचा दिया। की अगर आप हमें 20 नहीं पढ़ने देंगे तो हमें बाकी 12 रकअत अपने इमाम के पीछे पढ़ने दी जाए।* *सऊदी हुकूमत ने सोचा अगर इन्हें अपना इमाम खड़ा करने की इजाज़त दे दी जाए, तो फिर बाकी तीनो फिरका भी यही मुतालबा करेगा और फिर से वही चारो मुसल्ले वापिस बिछ जायेंगे और इत्तेहाद का असल मकसद फ़ौत हों जाएगा।*
👉 लिहाज़ा हुकूमत ने इंतेज़ामी अम्र के पेशे नज़र दो इमामों को मुक़र्र किया और इसका हल ये सोचा गया की एक कारी 10 रकअत पढ़ा कर चला जाए और जिसको मसनून तादाद यानी 11 रकात की अदायगी करनी हो वह भी अपना क़याम इस पहले इमाम के साथ पूरा कर ले और फिर उसके साथ हट कर 1 रकात वित्र पढ़ कर अपनी 11 मुकम्मल कर ले।
👉 *इधर दूसरा इमाम 10 रकअत अलग से और पढ़ाये और 20 पढ़ने वाले दोनों इमामो की इक्तेदा में अपनी 20 पूरी कर ले और यूँ इंतेज़ामी नुक्ता ए नज़र से हरमैन मे 20 रकत तरावीह दो इमामों के साथ अदा करने का सिलसिला चल निकला। चूँकि मस्जिदे नबवी में भी बाहर से आने वाले जो 20 रकात के कायल है उनकी तादाद अच्छी खासी होती है इसलिए वहाँ पर भी काबा शरीफ की तरह इंतेजाम किया गया*
👉 इस तरीक़े से क़यामुल्लैल की मसनून तादाद भी एक इमाम पूरी पढ़ाता है और वह वापस जाकर अपनी वित्र अलग पढ़ लेता है। इस तरह सुन्नते नबवी सल्लाहो अलैह वसल्लम पर भी अमल हो जाता है और टकराव की सूरत पैदा नहीं हो पाती। वरना वहां भी 11 रकाअते ही पढ़ाई जाती है। दूसरे इमाम के आने से तादाद नहीं बढ़ती बल्कि बाहर से आने वाले हाजियो और दीगर लोगो को 2 जमाते होने से सहूलियत हो जाती है।
👉 यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि *काबा शरीफ और मस्जिदे नबवी को छोड़ कर पूरे सऊदी अरब की तमाम छोटी-बड़ी मस्जिदों में 11 रकअत ही पढ़ी जाती है।* लिहाजा ये इस बात की खुली दलील है कि वहाँ के लोग सुन्नत के मुताबिक 11 रकअत(8 तरावीह+3वित्र) के ही कायल है।
👉 20 रकअत तरावीह पर काबा शरीफ और मस्जिदे नबवी को दलील बनाने वाले मुकल्लिदो को शर्म करनी चाहिए कि ये तो सऊदी हूकुमत के इंसाफ और इत्तेहाद का तकाजा है कि उन्होंने अभी तक काबा शरीफ और मस्जिदे नबवी में 20 रकअत तरावीह पढ़ाने को जारी रखा है वर्ना वहाँ की हूकुमत चाहे तो इस सिस्टम को कभी भी खत्म कर सकती है।
👉एक बात और है सिर्फ 20 ही का अगर दावा है तो एक चीज़ और भी है की अमीन बिल जहर, फातेहा खुल्फुल इमाम, रफयादैन, तावरुक सब भी होता है । इस पर चुप्पी क्यों? आइए आपको बताते हैं कि कितने अमल ऐसे है जो मक्का मदीना के हैं और उस पर हमारे हनफी भाईयों का अमल नहीं है और वे लोगों को भी ये अमल करने से रोकते हैं
1⃣ *मक्का मदीना में नमाज़ अव्वल वक़्त अदा की जाती है। आप लोग नहीं करते है।*?
2⃣ *मक्का मदीना में नमाज़े मगिरब से पहले दो रकअत नफ्ल नमाज़ अदा की जाती है। आप लोग नही करते हो न करने का टाइम देते हो।*?
3⃣ *मक्का मदीना में अज़ान के कलिमात दो-दो बार और तकबीर के कलिमात एक-एक बार कहे जाते है। आपके यहां अज़ान और तकबीर के कलिमात बराबर होते है।*?
4⃣ *मक्का मदीना मे सीने पर हाथ बांधा जाता है। आपके यहां नाफ के नीचे बांधते हैं।*
5⃣ *मक्का मदीना में मुक्तदी जहरी नमाज़ों मे भी इमाम के पीछ सूरह फातिहा पढ़ते है आपके यहां सिर्री नमाज़ो तक में नहीं पढ़ते।*
6⃣ *मक्का मदीना में आमीन बुलन्द आवाज़ से कही जाती है। आप लोग मना करते हो।*
7⃣मक्का मदीना में रूकू को जाते और उठते वक़्त और दो रकआत पढ़ कर तीसरी रकआत के लिए उठते वक़्त रफायदैन किया जाता है। आप नहीं करते और करने वाले को रोकते है।
8⃣ मक्का मदीना में औरतों को आम मस्जिदों में नमाज़ बाजमाअत से अदा करने के लिए आने की इजाज़त है। आपके यहां मना है और जहां आती वहां की आप हंसी उड़ाते है और रोकने की कोशिश करते हैं।
9⃣मक्का मदीना में औरतें र्इद उल फितर व ईद इल अज़हा की नमाज़ जमाअत के साथ अदा करती है। आपके यहां र्इदगाह में नमाज़ के बाद घूमने तो जा सकती है लेकिन साथ में नमाज़ अदा नहीं कर सकती।
मक्का मदीना में र्इदैन की नमाज़ों में बारह ज़ार्इद तकबीरों का एहतमाम होता है। आपके यहां सिर्फ 6 तकबीरे होती है।
1⃣1⃣ मक्का मदीना में नमाज़े जनाज़ा मसिजद में अदा की जाती है। आपके यहाँ मस्जिद से बाहर|
1⃣2⃣मक्का मदीना में नमाज़े जनाज़ा में सूरह फातिहा पढ़ी जाती है। आपके यहां नहीं पढ़ी जाती।
1⃣3⃣मक्का मदीना में रोज़े की नीयत ज़बान से नहीं कही जाती। आपके यहां जन्त्री पर लिखी जाती है और कर्इ मस्जिदों से ऐलान होता है पढ़ने के लिए।
1⃣4⃣ मक्का मदीना में अज़ान से पहले सलात व सलाम नहीं पढ़ा जाता। आपके यहां पढ़ते है।
1⃣5⃣मक्का मदीना में नमाज़ पहले ज़बान से नीयत नहीं कही जाती। आप लोग कहते हो और सिखाते हो।
1⃣6⃣मक्का मदीना में फर्ज़ नमाज़ों के बाद इज्तेमार्इ दुआ नहीं होती है। आप लोग करते हो।
1⃣7⃣मक्का मदीना में नमाज़ र्इद से पहले तकरीर या खुत्बा नहीं होता। आपके यहां होता है।
1⃣8⃣ मक्का मदीना में नमाज़े जनाज़ा में सना नहीं पढ़ी जाती। आप लोग पढ़ते हो।
1⃣9⃣ मक्का मदीना में नमाज़े वित्र की आखरी रकआत में किराअत के बाद रफायदैन नहीं किया जाता। आप लोग करते हो।
2⃣0⃣मक्का मदीना में वित्र को ताक़ अदद में अदा किया जाता है जैसे 3, 5, 7, । आपके यहां 3 के अलावा तादाद वित्र में जायज़ नहीं।
अगर बीस रकअत तरावीह पर मक्का मदीना का अमल अहनाफ के यहां दलील है। तो मक्का मदीना के बाकी अमलों को भी क़ुबूल करना चाहिए। इसे सिर्फ बीस रकत तरावीह तक ही क्यों महदूद कर दिया गया? बाकी मसअलों में उसको दलील क्यों नहीं बनाया जाता? कहीं यह यहूदो नसारा की तरह बाज़ पर र्इमान लाना और बाज़ का इनकार वाला मामला तो नहीं। और अगर अहनाफ उसको अहले हदीस पर दलील बनाकर पेश करते हैं तो उनको यह जान लेना चाहिए कि अहले हदीस के यहां भी दलार्इल सिर्फ वही है जो सलफ सालेहीन के यहां दलील थे
*अल्लाह दिलों की तंगी दूर करे और हक बात कुबूल करने की हिदायत दे.* (आमीन)
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