क्या 40 बातों से घर में ग़रीबी आती है*🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيم

*क्या 40 बातों से घर में ग़रीबी आती है?

सोशल मीडिया पर कई महीनो से एक पोस्ट घूम रही है जिस में बताया गया है के 40 बातों से घर में ग़ुरबत (ग़रीबी) आती है. आइये एक एक करके उन बातों को देखते हैं की वो कितनी सहीह हैं:
*(1) ग़ुस्ल खाने में पिशाब करना:*
हमाम (ग़ुस्ल खाने) में पेशाब करने से रसूलुल्लाह (ﷺ)ने मना फ़रमाया है मगर उस वक़्त केक हमाम मट्टी के होते थे और आज कल के हमाम पक्के होते हैं,इस लिए उस में पेशाब करना जायज़ है. और यह रसूलुल्लाह(ﷺ)के फरमान में नहीं है के हमाम में पेशाब करने से ग़ुरबत (ग़रीबी) आती है
शिया हजरात यह बात को हज़रत अली रदिअल्लहु अन्हु की तरफ भी मंसूब करते है मगर यह भी झूठ है
*(2) टूटी हुई कंघी (Comb) से कंघा करना:*
"रसूलुल्लाह(ﷺ) ने फरमाया जिस के बाल (Hairs) हों वह उन की इज़्ज़त करे."
अबु दावूद: 416(सहीह)
इस हदीस से पता चला के बालों की ज़ीनत के लिए कंघी करनी चाहिए.चाहे कंघी टूटी हो या सलीम हो (टूटी हुए न हो), अगर काम लायक है तो कंघी करें कोई हर्ज नहीं है और न ही इस के करने से गरीबी आती है।
*(3) टूटा हुआ सामान इस्तेमाल करना:*
टूटा हुआ सामान काम के लाइक हो तो उस का इस्तेमाल जायज़ है
.दलील
हज़रत उम्म ए सलमा रदिअल्लहु अन्हा से रिवायत है कि वह रसूलुल्लाह (ﷺ)और सहाबा रज़िअल्लहु अन्हुम के लिए एक चौड़े बर्तन में खाना लाई(इतने में) हज़रत आयशा रज़िअल्लाहु अन्हा आ गईं. उन्हों ने एक चादर ओढ़ रखी थी और उन के पास एक पत्थर था. उन्हों ने पथ्थर मार कर बर्तन तोड़ दिया.रसूलुल्लाह (ﷺ)ने बर्तन के दोनों टुकड़ों को मिला कर रखा और दो बार फ़रमाया:
खाओ, तुम्हारी माँ को ग़ैरत आगे थी. उस के बाद रसूल अल्लाह (ﷺ)ने हज़रत आयशा रज़िअल्लहु अन्हा का बर्तन ले कर हज़रत उम्म ए सलमा रज़िअल्लाहु अन्हा के यहाँ (घर, पास) भेज दिया और हज़रत उम्म ए सलमा रज़िअल्लाहु अन्हा का (टूटा हुआ) बर्तन हज़रत आयशि रदिअल्लाहु अन्हा को दे दिया.
सुनन नसाई: किताब: عشرة النساء, बाब: الغیرۃ: हदीस न०3956
सहीह सुनन नसाई: 3693
(सहीह अल्बानी)
लिहाजा यह बात बिल्कुल झूठ और बेबुनियाद है कि टूटा बर्तन इस्तेमाल करने से गरीबी आती है
*(4) घर में कुड़ा करकट रखना:*
घर का कुड़ा करकट घर के किसी कोने में जमा करने में कोई हर्ज नहीं है,जब ज़्यादा हो जाये तो फ़ेंक दें. इस में एक एहतियात यह होना चाहिए के खाने पीने की बची हुई चीजें बर्बाद न करें बल्के किसी मुहताज को दे दें.
किसी भी हदीस से यह साबित नहीं है कि घर में कुड़ा करकट रखने से गरीबी आती हो
शिया हजरात यह बात हज़रत अली रज़िअल्लहु अन्हु की तरफ भी मंसूब करते है जिसकी कोई असल नही है.
*(5)रिश्तेदारों से बदसुलूकी करना*
ऐसी कोई बात नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान में नहीं है के रिश्तेदारों से बदसुलूकी करने से गरीबी आती हो,लेकिन बहुत सारी ऐसी दलील हैं जिन से पता चलता है के नाफरमानी और गुनाह के काम से रिज़्क़ में तंगी होती है.
*(6) बाएं पैर से पजामह पहनना:*
मुमकिन है के इस से मुराद पजामा पहनने में बाएं जानिब से शुरू करना हो तो नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शरफ़ वाला काम दाएं से शुरू करना पसंद फरमाते थे,
सहीह बुखारी किताबुल वुजु हदीस-168
इस हदीस से बतौर इस्तेदलाल, दाएं जानिब से पजामा पहनना बेहतर  और मुस्तहब है मगर किसी ने बायें से पेहन लिया तो कोई नाफरमानी और गुनाह नहीं है इसलिए यह कहना कि बाये पैर से पजामा पहनने से गरीबी आती हो,बिल्कुल झूठ और बेबुनियाद बात है
*(7) मग़रिब और ईशा के दरमियान सोना:*
मग़रिब और ईशा के दर्मियान सोना मकरूह है इस का कारण ईशा की नमाज़ फौत हो जाना है इस लिए
"रसूलुल्लाह (ﷺ)ईशा से पहले सोना और ईशा के बाद बात करना नापसन्द फरमाते थे"
 सहीह बुखारी हदीस नं-568
लिहाजा मगरिब और ईशा के दरमियान सोना मकरूह जरूर है। लेकिन यह कहना कि इससे गरीबी आती है ये सरासर गलत और बेबुनियादी बात है

*(8) मेहमान आने पर नाराज़ होना:*
इस्लाम ने लोगोे को मेहमान की खातिरदारी पर उभारा है,
दलील
रसूलुल्लाह(ﷺ) ने फरमाया जो शख्स अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता हो उसे मेहमान की इज्जत करनी चाहिए उस की खातिरदारी बस एक दिन और रात की है,मेहमानी तीन दिन और रात की है उसके बाद जो हो वो सद्का है और मेहमान के लिए जायज नहीं कि मेजबान के पास उतने दिन ठहरे कि उसे तंग कर डाले"
सहीह बुखारी हदीस-6135
लिहाज़ा किसी मेहमान की आमद पर नाराज़गी का इज़हार न करें. लेकिन यह भी न समझे कि नाराज होने पर गरीबी आती है
*(9) आमदनी से ज़्यादा खर्च करना:*
जाहिर सी बात है कि अगर इंसान अपनी आमदनी से ज्यादा खर्चा करेगा तो उसको तंगी ही आयेगी। एक बेवकूफ ही होगा जो अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च करे।
*(10) दांत से रोटी काट कर खाना:*
दांत से रोटी काट कर खाने से गरीबी नहीं आती,क्योंकि ऐसी कोई भी हदीस नहीं है और ये बात अक्ल के खिलाफ भी है क्योकि अगर ऐसा होता तो दुनिया में कोई मालदार ही नहीं होता इसलिए कि दांतों (Tooth) से काट कर ही लोग बड़े होते हैं.रोटी तो हाथ से भी तोड़ी जा सकती है मगर ऐसी भी बहुत सी चीज़ें हैं जिन्हें अक्सर दांत से ही काट कर खाया जाता है.
*(11) चालीस दिन से ज़्यादा नाफ के नीचे के बाल रखना:*
चालीस दिन के अन्दर नाफ के नीचे के बाल साफ़ कर लेना चाहिए क्यों के रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यही हद मुक़र्रर की है,जैसा की सहीह मुस्लिम में हदीस है.(देखें: सहीह मुस्लिम: 258).
जो इस से ज़ियादा ताख़ीर (Late) करते हैं वह सुन्नत की मुखालिफत करते हैं,लेकिन कहीं से भी ये यह साबित नहीं होता है कि चालीस दिन से ज्यादा नाफ के नीचे के बाल रखने से गरीबी आती हो
*(12) दांत  से नाख़ून  काटना:*
इस्लाम में कहीं भी दांतों (Tooth) से नाख़ून काटने की मुमानियत(मनाही)नहीं आयी है,
लेकिन चूँकि इस्लाम सेहत की हिफाज़त पर ध्यान दिलाता है इस लिए अगर दांत से नाख़ून काटने में कोई तिब्बी (Medical) नुकसान का पहलु निकलता हो तो इस से परहेज़ किया जाये और अगर इस में नुकसान नहीं तो भी दांत से नाख़ून काटना सहीह नहीं लगता क्यों के नाख़ून में गन्दगी होती है और गन्दी चीज़ को मन से पकड़ना और दांतों से काटना सहीह नहीं लगता ख़ास तौर से लोगों के सामने.
अब रही बात कि इससे गरीबी आती है तो यह भी बिल्कुल झूठऔर गैर साबित बात है
*(13) खड़े खड़े पजामा पहनना:*@
पजामा खड़े और पड़े दोनों तरह से पहन सकते हैं,आप को जिसमें आसानी हो उसे इख़्तियार करें.और इससे किसी पर कोई गुनाह कोई गुनाह भी नहीं और न ही इससे गरीबी आती है।
*(14) औरतों का खड़े खड़े बाल बांधना:*
यह कोई मसला नहीं है. इस में एक ही बात का ख्याल जरूरी है के औरत अजनबी मर्द के सामने बाल न बंधे. बाक़ी वह अपनी सहुलियत के मुताबिक खड़े हो कर,बैठ कर या सो कर किसी भी तरह बाल बांध सकती है.इसमें शरियत की तरफ से कोई बंदिश नहीं है और न ही इससे गरीबी आती है ये भी दिगर बातों की तरह सरासर झूठ बात है
*(15) फटे हुए कपड़े जिस्म पर सीना:*
फटे हुए कपड़े जिस्म पर होते हुए रफू करना आसान हो तो इस में कोई हर्ज नहीं और उतारने की ज़रुरत पड़े तो उस सूरत में उसे उतारना ही होगा।
इसको गरीबी की वजह समझना सरासर जेहालत और बेवकूफी है
*(16) सुबह सूरज निकलने तक सोना:*
इन्सान को चाहिए के वह सुबह सवेरे उठे,फज्र की नमाज़ पढ़ेऔर फिर रोज़ी की तलाश में निकले. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि
"जिसने ने फज्र की नमाज़ पढ़ी वह अल्लाह के अमान में आ गया."
सहीह मुस्लिम: 657
जो बंदा नमाज़ छोड़ कर रोज़ाना ताख़ीर (Late) से उठे उस की क़िस्मत में बर्बादी ही बर्बादी है क्योंकि वह अल्लाह के अमान में नही है।
अलबत्ता फज्र की नमाज पढ़ कर सोने में कोई गुनाह नहीं है और न ही इससे कोई गरीबी आती है
*(17) दरख़्त के नीचे पेशाब करना:*
किसी भी चीज़ के साये में चाहे वो दरख़्त का हो या किसी और का उस के नीचे पेशाब और पखाने से मना किया गया है.
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है:
"लानत का सबब बनने वाली दो बातों से बचो,सहाबा ए किराम रज़िअल्लहु अन्हुम ने पुछा:ए अल्लाह के रसूल लानत का सबब बनने वाली वो दो बातें कोनसी हैं? आप (ﷺ)ने फ़रमाया: एक यह के आदमी लोगों के रास्ते में क़ज़ाए हाजत(पेशाब टायलेट वगैरह)करे, दूसरे यह के उन के साये की जगह(दरख्त,वगैरह)में ऐसा करे.
सहीह मुस्लिम: 269
इमाम तिबरानी ने अपनी किताब"मुअज्जम अल वसात” में फलदार दरख़्त के नीचे क़ज़ा ए हाजत की मुमानियत वाली रिवायत ज़िक्र की है लेकिन यह रिवायत उसूले मुहद्दीसीन पर ज़ईफ़ है।
जो दरख़्त आबादी से दूर हो या या उसका इतना साया न पड़ता हो कि कोई आराम कर सके तो उस दरख्त के निचे कजाए हाजत करने में कोई गुनाह नहीं है और न ही उससे गरीबी आती है।
*(18)बैत उल खला में बातें करना:*
क़ज़ा ए हाजत के वक़्त बात करना मना है. नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है:
"दो आदमी क़ज़ा ए हाजत करते हुए आपस में बातें न करें के दोनों एक दूसरे के सत्तर (शर्मगाह) को देख रहे हों क्यूंकी अल्लाह तआला इस बात पर नाराज़ होता है."
सहीह अत-तरग़ीब-155(सही अलबानी)
यहाँ सवाल पैदा होता है के आज कल घरों में पक्के टायलेट बने होते है और बंद करने के लिए दरवाजे भी होते है तो क्या इस में बातें करना जायज है या नहीं?
हदीस से तो पता चलता है कि बात करने की मनाही उस हालत में है जब दो आदमी नंगे हो कर एक दूसरे को देखते हुए बात करे
लेकिन पक्के और बंद टायलेट में बात करने की मुमानियत पर कोई दलील नहीं है. फिर भी @ सूरत यही है के टायलेट में क़ज़ा ए हाजत करते वक़्त बात न करें लेकिन ज़रुरत पड़े या फिर क़ज़ा ए हाजत से पहले टायलेट में दाखिल होते वक़्त बात कर सकता है.इसमें कोई गुनाह नहीं और न ही इससे गरीबी आती है
*(19) उल्टा सोना:*
पेट के बल सोना नापसन्दीदाह और मकरूह अमल है।
नबी करीम सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम ने फरमाया
"यक़ीनन इस तरह लेटने को अल्लाह तआला नापसन्द फरमाता है यानी पेट के बल (औंधा) लेटना."
सहीह अल जमी-2271 (सही अलबानी)
एक और हदीस मे आता है
"हजरत अबुजर रदी0 से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ मेरे पास से गुज़रे इस हाल में के में पेट के बल लेटा हुआ था, तो आप ﷺ ने मुझे अपने पैर से हिला कर फ़रमाया:जनीदब!( ये अबुज़र का नाम है) सोने का ये अंदाज जहन्नमीयो का है
सुनन इब्जे माज़ा-3724(सही अल्बानी)
इस लिए किसी को पेट के बल नहीं सोना चाहिए मगर ऐसे सोने से ग़रीबी आती है इस का कोई सुबूत नहीं है.
*(20) क़ब्रस्तान में हसना*
क़ब्रस्तान ऐसी जगह है जहाँ जा कर आख़िरत याद करनी चाहिए  इस लिए वहां हसना नापसन्दीदाह अमल है.
वहां बात करते हुए या यूँ ही हंसी आ गई तो इस में कोई हर्ज नहीं, और इस से रिज़्क़ पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
*(21) पीने का पानी रात में खुला रखना:*
खाने पीने का बर्तन रात में खुला रखने से ग़रीबी नहीं आती,अलबत्ता सोते वक़्त उन बर्तनो को ढक दें जिन में खाने पीने की चीज़ें हों. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है:
" नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जब सोने लगो तो चिराग बुझा दो,दरवाज़े बंद कर दो, मश्कजी (वाटर स्किन्स) का मुंह बांध दो और खाने पीने के बर्तनो को ढांप दो।हज़रत जाबिर रज़िअल्लहु अन्हु ने कहा के मेरा ख्याल है के ये भी कहा खुवाह लकड़ी ही के ज़रिये से ढक सको जो उसकी चौड़ाई में बिस्मिल्लाह कह कर रख दी जाये.
सहीह बुखारी हदीस- 5624
एक दूसरी रिवायत इस तरह है:
"ढक दो, मश्कजी (वाटर स्किन्स) का मुँह बंद करो,इस लिए के साल में एक रात ऐसी आती है जिस में बला नाज़िल होती है,और जिस चीज़ का मुंह बंद न हो और जो बर्तन ढाका होवा न हो तो उस में यह बला उतर पड़ती है.
सहीह मुस्लिम:हदीस- 2014
लिहाजा पीने के पानी को रात में खुला छोड़ने से उसमें शैतानी बला पड़ सकती है लेकिन इससे गरीबी आने की वजह समझना गलत है
पानी के बर्तन को खुला छोड़ने से गरीबी आने वाली बात शिया क़ुतुब से मन्क़ूल (आयी है) है,उस की किताब में लिखा है के बीस (20) आदतें ऐसी हैं जिन से रिज़्क़ में कमी आती है,उन में से एक पानी के बर्तन का ढक्कन खुला रखना है.
बिहार उल अनवर (मोहम्मद बक़र मजलसि) जिल्द: 73, पेज: 314 हदीस: 1)
*(22) रात में सवाली को कुछ न देना:*
यह बात भी शिया क़ुतुब से आयी है,और यह बात हज़रत अली रज़िअल्लहु अन्हु की तरफ मंसूब की जाती है,जिस की कोई हकीकत नहीं।
*(23) बुरे ख़यालात करना:*
इन्सान गुनाहों का पुतला है, उस से हमेशा गलती होती रहती है।उस के दिमाग़ में बुरे ख़यालात आते रहते हैं. एक मुस्लिम का काम है के वह उन बुरे ख़यालात से तौबा करता रहे और उन पर अमल करने से बचे.अल्लाह तआला अपने बन्दों पे बहुत मेहरबान है वह बन्दों के दिल में पैदा होने वाले बुरे ख़यालात पे पकड़ नहीं करता जब तक के उस पर अमल न करे
.दलील
"हज़रत अबु हुरैरा रज़िअल्लहु अन्हु से रिवायत है के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:बेशक अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत से उस वक़्त तक दरगुज़र (माफ़) कर दिया है(उस चीज़ को) जो उस के दिल में (बुरा) ख़याल पैदा होता है जब तक के उस पर अमल न करे या बोल न दे.
सहीह बुखारी: 5269 और सहीह मुस्लिम:127)
इस लिए यह बात कहना गलत है के बुरे ख़यालात से गरीबी आती है,अलबत्ता एक बात यह कही जा सकती है के बुराई और नाफरमानी वाले काम करने से गरीबी आ सकती है
अल्लाह तआला का फरमान है:
तर्जुमा: शैतान तुम्हें फ़क़ीरी से धमकाता है और बेहयाई का हुक्म देता है.
सुरह बक़रह: सुरह न०: 2 आयत न०: 268
*(24) बग़ैर वुज़ू के क़ुरआन मजीद पढ़ना:*
अफ़ज़ल यही है के वुज़ू करके क़ुरआन की तिलावत करे लेकिन बगैर वुज़ू के भी मुशफ से तिलावत करना जाएज़ है
इस लिए यह बात कहना बिल्कुल गलत है के बग़ैर वुज़ू के क़ुरआन मजीद पढ़ने से ग़रीबी आती है।
*(25) इस्तिंजा करते वक़्त बातें करना:*
इस सिलसिले में एक हदीस आई है
"दो मर्दों के लिए ये जाएज़ नहीं है के वो बैत उल खला के लिए निकलें,तो अपनी अपनी शर्मगाह खुली रख कर आपस में बातें करने लगें, क्यूंकि अल्लाह तआला इस बात पर नाराज़ होता है.
सहीह अत-तरग़ीब (अल्बानी): 155
इस हदीस में क़ज़ा ए हाजत के वक़्त बात करने की मुमानियत दो बातों के साथ है.
पहली बात: दोनों बात करने वाले आदमी अपनी शर्मगाह खोले हुए हों.
दूसरी बात: वह दोनों एक दूसरे को देख रहे हों.
लेकिन आज कल घरों में पक्के बैत उल खला बने होते हैं और आदमी पर्दे में होता है,इस लिए ज़रुरत के तहत इस्तिंजा और क़ज़ा ए हाजत के वक़्त कलाम करने में कोई हर्ज नहीं है
यूँही बिना ज़रुरत इस्तिंजा और क़ज़ा ए हाजत के वक़्त बात करना मकरूह है मगर ज़रुरत के तहत  बात कर सकते हैं.और इससे गरीबी नहीं आती।
*(26) हाथ धोये बग़ैर खाना खाना*
खाने से पहले हाथ धोना जरूरी नहीं है, रिवायात से पता चलता है के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ धोये बग़ैर भी खाना खाया है. खाना खाने से पहले हाथ धोनी वाली कोई रिवायत सहीह नहीं है सिवाए एक रिवायत के जो नसाई में है.
"हज़रत आयशा रदिअल्लाहु अन्हा से रिवायत है उन्होंने बयान किया के रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब भी सोने का इरादा करते और आप हालत ए जनाबत में होते तो वुज़ू करते और जब खाने का इरादा करते तो अपने दोनों हाथ धोते"
सुनन नसाई हदीस-257 और 258
इस हदीस को शेख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने सहीह क़रार दिया है.
इस रिवायत में मुतलक़ हाथ धोने का ज़िक्र नहीं है बल्की जनाबत से मुताल्लिक़ है,इस लिए यह कहा जायेगा के अगर हाथ में गन्दगी लगी हो तो खाने से पहले हाथ धो लेना चाहिए वरना ज़रुरत नहीं है.और हाथ न धोने से गरीबी आने वाली बात बिल्कुल झूटी है.
*(27) अपनी औलाद को कोसना*
औलाद की तरबियत वालिदैन के ज़िम्मा है, माँ बाप बच्चों की तरबियत के लिए डाट सकते हैं, कोस सकते हैं,बल्कि मार भी सकते हैं क्यूंकि बच्चों के सिलसिले में अहम चीज़ उन की तरबियत है.
तरबियत की से बच्चों को मारने का हुक्म हमें इस्लाम ने दिया है
"जब तुम्हारी औलाद सात (7) साल की उम्र को पहुंच जाएँ तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब वह दस (10) साल के हो जाएँ तो (नमाज़ में कोताही करने पर) उन्हें सजा दो,और बच्चों के सोने में तफ़रीक़(बिस्तर अलग)कर दो"
सुनन अबु दावूद हदीस-495
अल्लामा अलबानी रहिमहुल्लाह ने सहीह उल जमी’: 5868 में इस रिवायत को सहीह कहा है।
लिहाजा यह कहना कि औलाद को कोसने से गरीबी आती है, बिल्कुल झूठ और गलत बात है।
*(28) दरवाज़े पर बैठना*
दरवाज़ा से लोगों का आना जाना होता है, इस लिए अदब का तक़ाज़ा है के दरवाज़े पे न बैठे, नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म फ़रमाया है के रास्ते को हक़ दो.
लेकिन अगर अपना घर हो, लोगों का आना जाना न हो तो फिर अपने घर के दरवाज़े पे बैठने में कोई हर्ज नहीं है.और न ही इससे गरीबी आती है।

*(29) लहसुन प्याज के छिलके जलाना*
यह बात शिया की किताब जमी’ अल अखबार (الجامع الاخبار) में लिखी हुई है जिसे कुछ सूफियों ने अपनी किताब में ज़िक्र कर दिया और लोगों में मशहूर हो गयी.इस बात को तुर्कीस्तान के हनफ़ी आलीम बुरहानुद्दीन जर्नोजी ने अपनी किताब “تَعْلِیْمُ الْمُتَعَلِّمِ طَرِیْقُ التَّعَلِّم” में ज़िक्र किया है मगर इस्लाम में इस बात की कोई हकीकत नहीं है। लिहाजा यह भी बिल्कुल झूठी बात है।
*(30) फ़क़ीर से रोटी या फिर और कोई चीज़ खरीदना*
यह बात भी शिया की किताब जमी अल अखबार (الجامع الاخبار) में मौजूद है.
फ़क़ीर तो खुद ही मोहताज होता है वह क्यों किसी को कुछ बेचेगा और अगर उस के पास कोई क़ीमती सामान है तो उसे बैच सकता है.फ़क़ीर से कुछ खरीदना ग़रीबी का सबब हो तो कोई फ़क़ीर मालदार नहीं हो सकता और फ़क़ीर से खरीदने वाला कोई मालदार नहीं रह सकता. अक़ल और नक़ल दोनों ऐतबार से यह झूटी बात है.
*(31) फूँक से चिराग बुझाना*
यह बात  भी शिया किताब “जमे’ अल अखबार” से मन्क़ूल है जो हमारे लिए हुज्जत नहीं है.
चिराग तो फूँक से ही बुझाया जाता है, कोई दूसरे तरीके से बुझाये इस में भी कोई हर्ज नहीं लेकिन फूँक से चिराग बुझाने से गरीबी आती है यह बात सहीह नहीं है.
*(32) बिस्मिल्लाह पढ़े बग़ैर खाना*
खाना खाते वक़्त बिस्मिल्लाह कहना वाजिब है:
"हजरत आयशा रज़िअल्लाहु अन्हा से रिवायत है के रसूलल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया जब तुम में से कोई खाना खाये तो अल्लाह का नाम ले, और अगर अल्लाह तआला का नाम लेना शुरू में भूल जाये तो कहे: بِسْمِ اللَّهِ أَوَّلَهُ وَآخِرَهُ"
अबू दावूद हदीस-3767(सहीह)
बिस्मिल्लाह पढ़ें बगैर कोई शख्स खाना खाता है तो उस के खाने में शैतान शामिल हो जाता है इस लिए यह कहा जा सकता है कि अल्लाह के ज़िक्र के बग़ैर मुस्तक़िल खाना खाने से वह खाने की नेमत और उस की बरकत से महरूम हो जायेगा लेकिन यह कहना कि बिस्मिल्लाह पढे बगैर खाना खाने से गरीबी आती हो तो ऐसी को रिवायत नहीं मिलती।
*(33) गलत क़सम खाना*
इस्लाम में झूटी क़सम खाना गुनाह-ए-कबीरा  है नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है
"हजरत अब्दुल्ला बिन अम्र रदिअल्लहु अन्हुमा से रिवायत है की नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कबीरा गुनाह यह हैं अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना,वालिदैन की नाफरमानी करना या फ़रमाया की नाहक़ दूसरे का माल लेने के लिए झूटी क़सम खाना.
सहीह बुखारी हदीस-6870
 ऐसे लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है इस लिए एक मुस्लमान को क़तई तौर पर झूटी क़सम नहीं खानी चाहिए.
झूठी कसम खाकर कमाये हुए माल में अल्लाह की बरकते खत्म हो जाती है लेकिन दुनियावी ऐतबार से गरीब होना साबित नहीं है। अगर ऐसा होता तो आज हर वो शख्स जो कारोबार में झूठी कसमे खाता हो वो गरीब होता।
बहरहाल हर मुसलमान को हलाल कमाने की और हराम से बचने की कोशिश करनी चाहिए
 
*(34) जूता चप्पल उल्टा देख कर सीधा नहीं करना*
इस्लामी ऐतबार से इस बात की कोई हकीकत नहीं है नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ज़माने में भी जूता था मगर आप से,सहाबा-ए-किराम से या चारों इमाम से इस क़िस्म की कोई बात मन्क़ूल नहीं है.इब्न-ए-अक़ील हंबली ने किताब “अल-फुनूँ ” में लिखा है
"बर्बादी है उस के लिए जिस ने उलटी हुए रोटी देखी या पलटा हुवा जूता जिस की पीठ आसमान की तरफ हो उसे छोड़ दिया.
(अल-आदाब अल-शरिययह : 1/268-269)
इस कलाम में बहुत सख्ती है, क़ुरान और हदीस की रौशनी में इस कलाम की कोई हैसियत नहीं रहती.
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जूते में नमाज़ पढ़ते थे
दलील
"सईद बिन यज़ीद अल-आज़ादी कहते हैं की मैंने अनस बिन मालिक रदिअल्लहु अन्हु से पुछा कि क्या नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपने जूतों में नमाज़ पढ़ते थे ? उन्हों ने कहा: हाँ"
सहीह बुखारी हदीस- 386 और 5850
ज़ाहिर सी बात है कि जूते में नमाज़ पढ़ते हुए जूता पलटेगा ही इस लिए उल्टे जूते के मुताल्लिक़ ऊपर जिक्र की हुई बातें करना ठीक नहीं है अलबत्ता यह कह सकते हैं कि चूँकि जूते के निचले हिस्से में गन्दगी लगी होती है इस वजह से उल्टे जूते को पलट दिया जाये ताकि लोग उस से गदंगी महसूस न करें.
*(35) हालात-ए-जनाबत में हजामत(बाल कटवाना) करना*
हालत-ए-जनाबत(जिस हालत में गुस्ल वाजिब हो जाता है)में मर्द और औरत के लिए सिर्फ कुछ चीज़ें मना हैं,उन में नमाज़, तवाफ़, मस्जिद में क़ियाम और क़ुरान की तिलावत वग़ैरा हैं बाक़िया दूसरे काम जुनूबी अंजाम दे सकता है
हालत-ए-जनाबत में हजामत कराने को फ़क़ीरी और गरीबी का सबब बतलाना गैर इस्लामी नजरिया है। दूसरी बातों की तरह यह भी सरासर झूठी बात है।
*(36) मकड़ी का जला घर में रखना :*
यह बात भी बातिल और मरदूद है क्योंकि ऐसी कोई बात सहीह हदीस से हमें नहीं मिलती।
इस बात की निस्बत हज़रत अली रदिअल्लहु अन्हु की तरफ की जाती है लेकिन यह हजरत अली रदीयल्लाहो अन्हो पर तोहमत लगाने के अलावा कुछ नहीं
यह रिवायत“तफ़्सीर ए सालबी ” और “तफ़्सीर ए क़ुर्तुबी ” के हवाले से बयां की जाती है कि
"घरों को मकड़ी के जालों से साफ़ रखा करो कि उनके मकड़ी के जालों का घर में होना गरीबी आने का सबब है।"
लेकिन यह हदीस सख्त जईफ है क्योकि इस की सनद में “अब्दुल्लाह बिन मैमून अल -क़द्दाह ” मतरूक मुत्तहम बिल -काज़िब रावी है .
(तहज़ीब अत -तहज़ीब : 6/44, 45)
*(37) रात को झाड़ू लगाना :*
रात हो या दिन किसी भी वक़्त झाड़ू लगा सकते हैं , इस की मुमानियत की कोई दलील नहीं है।इस लिए रात को झाड़ू देने को गरीबी का सबब बतलाना सरासर जेहालत और तवह्हुम परस्ती है।
यह बात हिन्दूओ में भी पाई जाती है और मुसलमानों का एक तबका (बरेलवी) भी इससे मुतअस्सिर है।अल्लाह हिदायत दे।

*(38) अंधेरे में खाना :*
वैसे उजाले में खाना खाये तो अच्छा है मगर किसी को उजाला न मिल सके या लाईट नही है या और कोई मजबूरी है तो अंधेरे में खाने में कोई हर्ज नहीं है। कुरआन शरीफ के सुरह हश्र में एक अंसारी सहाबी का ज़िक्र है जिन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मेहमान को अंधेरे में मेहमानी करवाई बावजूद ये के चिराग मौजूद था मगर उन्होंने खाना कम होने की वजह से बीवी को चिराग बुझाने के लिए कहा ताकि अंधेरे में मेहमान पेट भर कर खा ले और मेज़बान भूका रहे . इस मंज़र को अल्लाह ने बयां करते हुए ये आयत नाजिल फरमाई
तर्जुमा
"वह अपने ऊपर दूसरों को तरजीह देते हैं चाहे खुद को कितनी ही सख्त हाजत हो"
सुरह अल हश्र आयात न- 9
 तफ्सीर इब्ने कसीर जिल्द-6(हिन्दी)
लिहाजा अंधेरे में खाना खाने को गरीबी आने की वजह समझना सरासर जेहालत और बेवकूफी है।
*(39) घड़े में मुँह लगा कर पीना:*
एक रिवायत में मश्कजी से मुँह लगा कर पानी पीने की मुमानियत आई है
"हज़रत अबु सईद खुदरी अल्लाहु अन्हो ने बयान किया कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मश्कीजो से मुँह लगा कर पानी पीने को मना किया था .
 तिर्मीजी शरीफ हदीस-1890
लेकिन एक दूसरी हदीस है जिस से साबित हो रहा है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मश्कजी में मुँह लगा कर पानी पिया है:
काबशाह रज़िअल्लाहु अन्हा कहती हैं कि रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मेरे घर तशरीफ़ लाये,आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने खड़े खड़े लटकी हुए मशकीज़ह को मुँह(मुबारक) लगा कर पानी पिया,फिर मै मशकीज़ह के मुँह के पास गई उस को(तबर्रूक के लिए) काट लिया.
खुलासा के तौर पर यह कहना चाहूंगा मश्कीजा,घड़ा या बर्तन छोटा हो और उसमें मुँह लगाकर पानी पीना आसान हो तो उस में मुँह लगा कर पानी पी सकते है और अगर बड़ा हो तो दूसरे छोटे बर्तन में उंडेल कर पियें।अगर किसी मजबूरी की वजह से बड़े बर्तन से पीने की ज़रुरत पढ़ जाये तो इस में कोई हर्ज नहीं.और न ही इससे गरीबी आती है।
*(40) क़ुरान मजीद न पढ़ना:*
क़ुरान मजीद पढ़ने और अमल करने की किताब है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने क़ुरान पढ़ने का हुक्म दिया है।इस से ईमान में ज़ियादती, इल्म और अमल में पुख्तगी (मज़बूती) और ज़िन्दगी की तमाम चीज़ में बरकत आती है। कुरान मजीद के फजाईल पर बहुत सारी सही हदीसे मौजूद है
इस लिए क़ुरान मजीद पढ़ने का मामूल बनायें और समझ कर पढ़े ,जो बिना समझे पढ़ते हैं वह क़ुरआन के नुज़ूल के मक़सद से बेख़बर और तिलावत के आदाब से ना-वाक़िफ़ रहता है। जो कुरान मजीद से दूरी इख्तेयार करता है वह वाकई अल्लाह की रहमत से दूर हो जाता है लेकिन दुन्यावी एतबार से गरीब होना शरियत से साबित नहीं और यह बात अक्ल के खिलाफ भी है क्योंकि बहुत सारे ऐसे दौलतमंद मुसलमान है जो कुरान शरीफ पढ़ना ही नहीं जानते और न ही सिखने की कोशिश करते है।
अल्लाह तआला,हम सब मुसलमान भाइयों को कहने, सुनने और सिर्फ पढ़ने से ज्यादा अमल करने की तौफीक अता फ़रमाये और हमारे रसूल  नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बताई हुई सुन्नतों और उनके बताये हुए रास्ते पर हम सबको चलने की तौफीक अता फ़रमाये (आमीन)।

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