*एक साथ तीन तलाक पर हजरत उमर रदीयल्लाहो अन्हो का हुक्म और शरीयते मोहम्मदी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम*
*एक साथ तीन तलाक पर हजरत उमर रदीयल्लाहो अन्हो का हुक्म और शरीयते मोहम्मदी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम*
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हजरत इब्ने अब्बास रदीयल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने कहा कि रसूलल्लाह सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम और अबुबक्र रदीयल्लाहो अन्हो के जमाने में और उमर रदीयल्लाहो अन्हो के(पहले) दो साल तक (एक साथ)तीन तलाकें एक ही शुमार होती थी,फिर हजरत उमर बिन खत्ताब रदीयल्लाहो अन्हो ने कहा कि लोगों ने ऐसे काम(तलाक देने) में जल्दबाजी शुरू कर दी है जिस में उनके लिए सोच विचार(जरूरी)था। अगर हम इसको उन पर नाफिज कर दे(तो शायद वो एक साथ तीन तलाक देने से रूक जाये) इसके बाद उमर रदीयल्लाहो अन्हो ने इसे उन पर नाफिज कर दिया(यानि एक साथ दी गईं तीन तलाक को तीन शुमार करने लगे)
📗सहीह मुस्लिम हदीस-3673
हजरत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने जो हुक्म दिया था आज हम उसे उल्टा समझ रहे हैं असल में उसे रोकने के लिए था कि लोग एक साथ तीन तलाक ना दे आज हम समझ रहे है कि तीन तलाक को तीन शुमार करने के लिए था।
हजरत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने जो कुछ किया वो एक मसलीयत और वक़्त कि जरूरत थी ना कि शरय मसला क्योंकि शरय मसला तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबू बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहु अन्हु और खुद उमर रज़िअल्लाहु अन्हु दौर के दो साल था कि एक मजलिस कि तीन तलाक को एक माना जाता था। एक काम जो खिलाफ ए सुन्नत था यानी एक साथ तीन तलाक देना जो दुरुस्त नहीं था लेकिन लोग कर रहें थे लेकिन उस वक़्त किसी से हो जाए तो शरीयत उसे पकड़ती ना थी लेकिन जब लोगों ने कसरत से बिना खौफ के एक साथ तीन तलाक देने लगें तो आपने बा हैसियत कानून ये हुक्म फरमाया कि मैं आइन्दा से तीन को तीन ही गीन लुंगा ताकि तुम एहतियात करो मजाक ना करों ये हुक्म सिर्फ इस लिए था कि लोग एक साथ तीन तलाक देने से बाज़ आ जाए रुक जाए वरना फिर दो साल तक ये हुक्म शरय क्यूं जारी था अगर ये शरीयत का हुक्म होता तो आप आते ही बदल देते और सहाबा किराम भी इस पर इज्मा करते लेकिन दो साल तो कुछ नहीं बदला और न ही सहाबा किराम ने आपके फतवे पर इज्मा किया ।क्योंकि सहाबा किराम भी एक साथ दी हुई तीन तलाक को एक ही शुमार करते थे जिनमें कुछ के नाम है👇
1 हजरत इब्ने अब्बास रजि0
2 हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजि0
3 हजरत जुबैर रजि0
4 हजरत अली रजि0
5 हजरत इब्ने मसऊद रजि0 वगैरह
(फतहुल बारी-10/456)
इसका मतलब ये शरय मसला नहीं था आपकी कानूनी कारवाई थी जो आपने जरूरी समझी पस ये हुक्म शरय नहीं कानूनी हैसीयत रखता हैं की लोग डर जाए कि अब हमने ऐसा किया। तो बीवी निकाह से बाहर हो जाएगी जब तक वो दुसरे से निकाह न। कर ले और निकाह भी बा काइदा हमेशा के लिए करे न कि हलाला क्यूंकि हजरत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु इसके सख्त मुखालिफ थे और हलाला करने और करवाने वालों को रज्म(पत्थरों से मार मारकर हलाक करने वाली सजा) देते थे। पिछले लोग अल्लाह से डरते थे और तलाक के मामले में सुन्नत तरीका अपनाते थे न कि एक साथ तीन तलाक देते थे लेकिन बाद में लोगों ने इसे मजाक बना लिया था और एक साथ तीन तलाकें देने लगे तो अल्लाह कहीं इनके इनाम इल्लाही से महरूम ना कर दे बस ये फातावा इनको सजा के तौर पे था न कि उमर रदीयल्लाहो अन्हो ने नाऊजूबिल्लाह कोई नया शरय हुक्म नाफिस किया। बल्कि शरय हुक्म तो वहीं नबी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम का एक मजलिस की तीन तलाक को एक तलाक मानने वाला ही था।
लेकिन हाय अफसोस कि हंनफीयो ने हजरत उमर रदीयल्लाहो अन्हो के खास उस वक्त के लिए उस हुक्म को कयामत तक के लिए अपने ऊपर नाफिज कर लिया यानि एक साथ दी गईं तीन तलाक को तीन ही शुमार करने लग गये।और नबी सल्ललल्लाहो अलेहीवसल्लम के शरय हुक्म की सरेआम खिलाफवर्जी कर दी और हद तो तब हो गई कि इन्होंने इसका इल्जाम भी हजरत उमर रदीयल्लाहो अन्हो पर डाल दिया।फिर बड़ी बगैरती के साथ हमारी बहन बेटीयो का हलाला करवाने का फतवा देते। जिस इस्लाम ने औरतों को सबसे ज्यादा ईज्जत दी,उसी इस्लाम की आड़ में औरतों को एक रात के लिए दुसरे मर्द के हवाले कर दिया जाता है।अल्लाह रहम फरमाये हमारे हंनफी भाईयो पर।
अभी कुछ साल पहले दारूल उलूम देवबंद ने यह फतवा दिया था कि अगर कोई शख्स एक साथ तीन तलाक देगा तो उसको समाज से बायकाट किया जायेगा। अब किसी देवबंदी में हिम्मत है कि वह इससे यह दलील पकड़े कि आज से देवबंद के नजदीक भी एक मजलिस की तीन तलाक एक शुमार होगी?? नहीं बिल्कुल नहीं बल्कि वह कहेगा कि इस फतवे का मकसद लोगों को सिर्फ़ एक साथ तीन तलाक देने से रोकना है।
बस हम भी तो यही कहते है कि हजरत उमर रदियल्लाहो अन्हो के फतवे का भी यही मकसद था।
जब देवबंद के फतवे से आप एक मजलिस की तीन तलाक को एक शुमार नहीं करते तो फिर हजरत उमर रदियल्लाहो अन्हो के फतवे से एक मजलिस की तीन तलाक को तीन शुमार किस तरह करने लग गये?ये नाइंसाफी और मस्लकपरस्ती नहीं है तो और क्या है? समझो मेरे हंनफी भाईयो समझो
हक यही है कि सुन्नत तलाक एक के बाद एक हैं ना कि सब एक साथ जो ऐसा करता हैं वो हद से गुजर जाता हैं अपने नफ्स पे जुल्म करता हैं और एहकाम ए इल्लाही के साथ खेल करता हैं। अब अगर कोई एक साथ तीन तलाक दे भी देता है तो वह एक ही मानी जायेगी।वह रूजू कर सकता है और उसको हलाला करवाने की कोई जरूरत नहीं होगी। यही शरियत का हुक्म है।
आखिर में अल्लाह रब्बुल ईज्जत से दुआ है कि मुझ नाचीज की इस छोटी सी कोशिश को हमारे हंनफी भाईयो की हिदायत का जरिया बना दे और उनको उलेमा सू के चंगुल से निकालकर कुरआनो सुन्नत की तरफ रूजू करने की तौफीक अता फरमाये और हम सभी को मरते दम तक कुरआनो सुन्नत पर कायम रखे।
आमीन
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