*मैं मुसलमान बनना चाहता हूं*

*मैं मुसलमान बनना चाहता हूं*

लेकिन लोग कहते हैं के मुसलमान बनने के बाद किसी इमाम की तक़लीद ज़रूरी है.अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं किस फ़िरके के इमाम की तक़लीद करूं ???
देवबंदी , बरेलवी , हनफ़ी , शाफ़ई , मालिकी , हंबली , क़ादियानी , इस्माईली , जअफ़री , रिज़वी , शिया , क़ादरी , अत्तारी , चिश्ती , सैयदी , साबरी , नक़्शबन्दी , शाज़वी , निज़ामी , नूरी , बरकाती , रिफ़ाई , शहरवर्दी , बग़ैरवर्दी , वगैरह , वगैरह .
अगर आप लोगों की ज़िद्द है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि  वसल्लम के अलावा: ऊपर बयान किये गए किसी फ़ौत शुदा शख़्सियत में से ही इमाम मुन्तख़ब करना लाज़मी है,
तो क्या मेरे लिये यह बेहतर न होगा कि मैं हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ या उमर या उषमान या फिर अली रदिअल्लाह तआला अन्हु को अपना इमाम बनालूँ और पहचान के लिए सिद्दीक़ी या फ़ारूक़ी या फिर उषमानी कहलाऊँ.
लेकिन जब मैंने क़ुरआन व हदीष का मुतालेआ किया तो पता चला कि अल्लाह ने ख़ुद मेरे लिए एक इमाम मुन्तख़ब किया हुआ है.अल्लाह तआला फ़रमाता है ए ईमान वालो अल्लाह की इताअत करो और रसूल का कहना मानो और अपने अअमाल ग़ारत न करो ( सूरह मुहम्मद आयात नम्बर 33 )
अब अगर मैं अल्लाह का हुकुम मानकर सिर्फ़ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तक़लीद करूं तो क्या मैं ग़लती पर हूँ ? या हक़ पर ?
आप लोगों में से किसी को कोई ऐतराज़ तो नहीं है.

इमाम-ए-आज़म सिर्फ़ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम.

पसंद अपनी अपनी इमाम अपना अपना जिसे जो पसंद आये वोह उस इमाम के पीछे चले.

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